दूर रेगिस्तान में एक पत्थर की उंची मूर्ति सबका ध्यान अपनी ओर खींच रही थी। दूर-दूर से लोग देखने आते थे। उस आश्चर्यजनक प्रतिमा में कुछ था, जिसकी ख्याति राजा तक भी पहुंच गयी और एक दिन वो राजा अपने दल-बल सहित उस मूर्ति के दर्शन के लिए आ पहुंचा। उस मूर्ति के शिल्पकार को भी बुलाया गया। राजा ने पूछा- हे शिल्पकार! यहां रेगिस्तान से गुजरते हुये पहाड़ का छोटा टीला हममें से कई लोगों ने देखा था पर ये मूर्ति यहां कब आयी? शिल्पकार का जवाब जीवन का महान सिद्धांत है। वह बोला-‘‘मूर्ति तो यहां पहले से ही थी, आस-पास कुछ कंकर पत्थर इकट्ठे हो गये थे जिसे मैंने हटा दिया।’’ हम भी जीवन की ऐसी ही मूर्तियां हैं जिसके आसपास कचरा-कूडा़ इकट्ठा हो गया।
1 शिल्पकार कहां मिलेगा?
ईश्वर ने हमें सब कुछ देकर ही इस संसार में भेजा है। वो शिल्पकार भी हमारे ही भीतर कहीं छिपा है। परन्तु मोह, लालच ,माया और जीवन की बीमारियों ने हमारे शिल्पकार को ढंक दिया। जब परेशानियां आएंगी तो हमारी चेतना चौंककर उठ खड़ी होगी। और आसपास इकटठा हुआ कचरा या दुख का पहाड़ भरभरा कर गिर पड़ेगा।
2 क्या परेशानियां स्थायी हैं?
बदलाव के अलावा इस संसार में कुछ स्थायी नहीं है। समय बदल जाता है और उसके साथ ही हमारा नजरिया भी। हम जैसा देखें, चीजें हमें वैसी ही दिखने लगती हैं। महान कामेडियन चार्ली चैपलिन कहते हैं-‘‘इस चिरकुट दुनिया में कुछ भी स्थायी नही है, हमारी परेशानियां भी गुजर जाएंगी।’’
3 परेशानियों के प्रकार
सीधे तौर पर परेशानियां दो प्रकार की होती हैं- असली परेशानियां और पैदा की हुयी परेशानियां। पैदा की हुयी परेशानियां असली परेशानियों से करोड़ों गुना ज्यादा हैं। इसके अलावा मन की परेशानियां दिल, दिमाग, शरीर, समाज, भावनाएं, संवेदनाएं, बीमारियां, तकनीक, लालच, इच्छाएं, वासनाएं, धन की कमी जैसी कई समस्याएं।और जैसा गालिब कहता है-हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले।’’ ख्वाहिशें ही परेशानियां हैं।
4 तो क्या डर जाएं?
मैं तो ऐसा नहीं कहूंगा क्योंकि कोई चील ये देखकर नहीं डरती कि चिड़िया कितनी हैं? शेर हिरणों की तादाद देखकर भयभीत नहीं होता। हम समस्या पैदा कर सकते हैं, तो क्या उसे खत्म करना हमारी क्षमता में नहीं है? महान वर्जिल ऐसा नहीं मानते। उनके शब्दों में ‘‘भेड़िये को कोई परेशानी नहीं कि भेड़ें कितनी हैं।’’
5 क्या करें?
मैं पहले यह बताना चाहूंगा कि क्या न करें? यदि परेशानियां कम चाहिये तो तुलना करने से बचें। ज्यादा प्रतियोगिता न करें। आपको जो चाहिये वो उपलब्ध है। किसी और से छीनकर आप हमेशा के लिये अमीर नहीं बन पायेंगे। और मन के ज्यादा गुलाम न बनें। मन की अंधेरी गुफाओं से जाने कैसे-कैसे भय, डर प्रसारित होते रहते हैं। अंधेरे में ज्यादा तीर न चलाएं। मार्क ट्वीन कहते हैं-‘‘ अब मैं बूढ़ा हो गया और मैं कई महान परेशानियों का गवाह हूं। पर उनमें से अधिकतर आयी ही नहीं।’’
परेशानियां हमारे जीवन में आती हैं, ये जांचने के लिये कि हम कितने तैयार हैं। जीवन का संघर्षश्चल रहा है और सबसे दमदार लोग जीवित रहेंगे। परेशानियां हमारे दम की परीक्षा लेती है। हमें भी उस पहाड़ की तरह अपने भीतर छिपी हुयी मूर्ति देखनी चाहिये और जीवन के सत्य के अलावा सब कुछ कचरा होता है।
गप्पू चतुर्वेदी
100counsellors.com
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