भारत हमेशा से ही महान लोगों की जन्म स्थली रही है। बिरसा मुंडा एक सामाजिक सन्यासी थे जिन्होंने भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान अदा किया।
1 प्रारम्भिक जीवन
श्री बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवम्बर 1875 में बिहार के उलीहातु प्रांत में हुआ। बिरसा मुंडा के माता-पिता और भाई-बहन रोजी रोटी की तलाश में कुरुम्बदा आ गये। रेत और धूल में खेलते हुये उनका बचपन बीता। बांसुरी बजाते हुये वो जंगल में जानवर चराते थे। गरीबी से अभिशापित गुलाम भारतीय समाज जीवन की कठिनाईयां झेलने के लिए मजबूर था। उन्हें स्कूली शिक्षा के समय ईसाईयत के संपर्क में लाया गया। और उनका नाम रखा गया बिरसा डेविड।
2 जीवन निर्माण का समय
सन् 1886-1890 के समय बिरसा चाईबासा में रहे। जहां उनका धर्म से साक्षात्कार गहरा हुआ। वहां सरदार आंदोलन के साथ रहकर उन्हें जर्मन ईसाई मिशन छोड़ना पड़ा। किसानों के आंदोलन के साथ जुड़े रहकर उन्होंने अपने समुदाय के कल्याण के लिये कई कार्य किये।
3 नये धर्म की स्थापना
ईसाईयत से दूर होने के बाद बिरसा मुंडा ने अपने समुदाय का आध्यात्मिक संरक्षण किया। मुंडा समुदाय, ओरेयान, खरिया समुदाय के लागों ने बिरसा मुंडा का धर्म स्वीकार कर लिया और बिरसा उनके सामुदायिक संस्कृति और धार्मिक अनुष्ठानों को पुनर्जीवित करने लगे। बहुत थोड़े समय में आदिवासियों का धर्म गुरु बनकर उन्होंने अपने समुदाय के आधुनिकीकरण पर सराहनीय काम किया।
4 आदिवासी आंदोलन-बिरसा का नारा
‘‘अगुआ राज सितर जाना, महारानी राज टुंडु जाना।’’ (रानी का राज्य खत्म करो और अपने राज्य की स्थापना करो।) बिरसा मुंडा के इस नारे से अंग्रेज सियासत हिल गयी थी। आज भी उड़ीसा, बिहार, पश्चिम बंगाल और आदिवासी बहुुल इलाके में बिरसा का यह नारा धर्म वाक्य से कम नहीं माना जाता।
5 मजबूरी के परिवर्तन का विरोध
आदिवासियों की अपनी स्वतंत्र संस्कृति है। परन्तु अंग्रेज उनका शोषण करने के लिये आधुनिक या चतुर योजनाएं आजमा रहे थे जिससे आदिवासी संस्कृति छिन्न-भिन्न हो रही थी। उसी का विरोध करते हुये 3 मार्च 1900 चक्रधरपुर के जंगलों में उन्हें गिरफतार कर लिया गया,जहां रांची जेल में 09 जून 1900 में उनका निधन हो गया। हालांकि 25 वर्ष का छोटा जीवन इतिहास के लिये कम पड़ गया परन्तु इतने अल्पकाल में भी श्री बिरसा मुंडा जी ने आदिवासियों के आंदोलन को स्थापित करके नयी दिशा दी। आदिवासी समुदाय के उत्थान में बिरसा जी का योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
6 भारतीय संस्कृति और आदिवासी
भारत संभावनाओं का देश है जहां पुरातन और आधुनिक कदम से कदम मिलाकर चलते हैं। अंग्रेज जिन आदिवासियों को गरीब और पिछड़ा हुआ समझते थे बिरसा मुंडा ने उन आदिवासियों की चेतना को झकझोर दिया था। और उस आदिवासी आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रीय स्वतंत्रता के आंदोलन को बड़ा संबल प्रदान किया। भले ही 25 वर्ष की अल्प आयु में बिरसा जी नहीं रहे परन्तु कई संस्थानों जैसे बिरसा कृषि महाविद्यालय, बिरसा तकनीकी संस्थान, बिरसा मुंडा आदिवासी महाविद्यालय के रुप में उनका नाम भारतीय इतिहास में सदैव अमर रहेगा। बिरसा मुंडा जी 19 वीं सदी के एक प्रमुख आदिवासी जननायक थे जिनको लोग भगवान की तरह पूजते थे। आज श्री बिरसा मुंडा जी के पावन जन्म दिवस पर 100counsellors.com की तरफ से शत् शत् नमन और ढेर सारी शुभकामनाएं।
गप्पू चतुर्वेदी
100counsellors.com
Editor Panel