रश्मि यूं तो बहनों में सबसे छोटी थीं और मुझसे उम्र में बड़ी किंतु हमेशा से ही घर में दादी की भूमिका में होती थी। हर समस्या में समाधान ढूंढने की कोशिश उनकी शख्सियत को सबसे अलग करती थी।
बीए में स्वर्ण पदक पाने के बाद आगे की पढ़ाई न करना और अपनी सोच से ज़िन्दगी जीना उनके व्यक्तित्व का हिस्सा रहा। खुद्दारी और हालातों से समझौता न करना, ईमानदारी और सच्चाई जैसे गुणों की याद दिलाता है। जिस सादगी से उन्होंने अपनी ज़िन्दगी बितायी, वह अविश्वसनीय है।
मुझे याद है डायबिटीज की बीमारी के बाद दमन में हमारे घर में आना और अस्पताल जाना। रोज सुबह शुगर की जांच करते हुये ये लगता था जैसे यंत्र खराब है। बीमारी से लड़ते हुये वो थक गयी थी।
बचपन में रश्मि एक दुबली-पतली खिलाड़ी स्वभाव की लड़की थी। हॉकी उनका प्रिय खेल था। और उन्होंने अपने कालेज की तरफ से टीम में भाग लिया था। मेरे साथ दिन में शतरंज और ताश के पत्तों की अनगिनत पारियां उनके हमेशा जीतने की आस को इंगित करती हैं।
रश्मि के अपनी सहेलियों से खास संबंध रहे। त्योहारों में उनके घर जाना और उनसे मिलना उन्हें अच्छा लगता था। एक बार दीवाली पर्व पर स्कूटी में उन्हें बिठाकर उनकी एक सहेली के घर ले गया। मुझे याद है रात 10 बजे हम दोनांे घर लौट रहे थे। अचानक एक भैंस सामने आ गयी। रात का अंधेरा था इसलिए जब वह एकदम सामने आयी, तभी दिखी। हमारा संतुलन बिगड़ गया और दोनों गिर गये। पर उन्होंने इस घटना का दोषारोपण कभी भी नहीं किया। इस बात से उनके सहृदय होने का प्रमाण मिलता है।
बचपन में रश्मि हमेशा भयभीत हो जाती थी। मुझे हमेशा उनके साथ बाहर जाना होता था। उन्हें शराबियों से खासा डर लगता था। मुझे याद है जिस रेलवे कालोनी गोंदिया में हमारा बचपन बीता वहां दो व्यक्ति जो रेलवे में कार्यरत थे शाम को शराब पीकर आते थे। रश्मि उनसे बहुत डरती थी।
रश्मि अपने पिता की बहुत लडली थी। और उन्हें घर में कोई डांट नहीं सकता था। उनकी बात को माना जाता था। जिंदगी को सीमित संसाधनों में भी जीना उन्हें आता था।
रश्मि का पसंदीदा फल खरबूज था जो गर्मियांे में आता है। घर के लोग फल खाते थे और रश्मि उसके बीजों को धोकर, सुखाकर एक डब्बे में भरकर रख लेती थीं और कई हफ्तों तक उसे छीलकर खाया करती थी। यह उनके बुद्धिमान होने का भी एक कारण लगता है।
उनके साथ बिताये 25-26 वर्षों में मैंने रश्मि के स्वभाव में अहंकार और लोभ नहीं पाया। सादगी और सच्चाई से जीना और अपने दुखों का खुद निर्वाह करना उनकी शख्सियत का हिस्सा थे।
हमेशा लोगों के दिलों को जीतना यही उनकी ज़िन्दगी की असली कमाई थी।
उनके चरित्र की ये सारी बांते आज ढूंढ पाना मुश्किल सा मालूम पड़ता है।
अनिल कुमार सहगल
छोटा भाई