नवदुर्गा

नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों के विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परंतु यह सब एक हैं।

दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अंतर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नांकित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं–

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।। [1]

पुराणों में बताया गया है कि नवरात्रि माँ दुर्गा की आराधना, संकल्प, साधना और सिद्धि का दिव्य समय है। यह तन-मन को निरोग रखने का सुअवसर भी है। देवी भागवत के अनुसार मां भगवती ही ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के रूप में सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करती हैं। भगवान शंकर के कहने पर रक्तबीज शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ आदि दानवों का संहार करने के लिए माँ पार्वती ने असंख्य रूप धारण किए किंतु माता के मुख्य नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि का प्रत्येक दिन देवी माँ के विशिष्ट रूप को समर्पित होता है और हर स्वरूप की उपासना करने से अलग-अलग प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं।

माँ दुर्गा अपने पहले स्वरुप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती है | पर्वतराज हिमालय के यहाँ पुत्री के रूप में जन्म होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा था | माता जी के दाहिनें हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है | यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है | पार्वती , हेमवती यह इन्ही के नाम हैं | उपनिषद की कथा के अनुसार हेमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व भंजन किया था |
नवदुर्गाओं में शैलपुत्री देवी जी का महत्व और शक्तियां अनंत हैं | नवरात्री पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती हैं |

प्रथम स्वरुप देवी शैलपुत्री की कथा- स्तुति मन्त्र

नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली। इससे ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। नवरात्रि में दुर्गा पूजा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाती है। मां ने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।

द्वितीय स्वरूप माँ ब्रह्मचारिणी की कथा-स्तुतिमन्त्र

नवदुर्गा में तृतीय स्वरूप माँ चंद्रघंटा है | उनके मस्तक के पीछे घंटे के आकर का चंद्रमा सुशोभित है , इसीलिए इनका नाम माँ चंद्रघंटा है | जानिये चंद्रघंटा देवी जी का प्रभाव तथा पूजन कथा |

तृतीय स्वरुप माँ चंद्रघंटा देवी की कथा-स्तुतिमन्त्र

नवदुर्गा में चौथा स्वरुप माँ कुष्मांडा देवी जी का है .. जानिये इनका नाम कुष्मांडा क्योँ और कैसे पड़ा ? इस वीडियो कुष्मांडा देवी जी की कथा तथा मूलमंत्र / पूजन मंत्र का वर्णन किया गया है ……….

चतुर्थ स्वरुप कुष्मांडा देवी की कथा- स्तुति मन्त्र

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पांचवा स्वरुप स्कंदमाता देवीजी की कथा- स्तुति मन्त्र

नवदुर्गा में छटवां स्वरूप माँ #कात्यानी है | जानिये इनका नाम कात्यानी क्यों और कैसे पड़ा ????

छठा स्वरुप कात्यानी जी की कथा- स्तुति मन्त्र

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