जब मैं शादी होकर आयी तो ससुराल में सब लोग नये-नये थे मेरे लिये। वो मेरे पास आयीं और उन्होंने पूछा-‘क्या कहकर बुलाऊं तुम्हें।’ मैंने कहा कि आप मुझसे बड़ी हो तो मेरा नाम लेकर बुला सकते हो। पर यदि आप मुझे भाभी कहकर बुलाओगी तो मुझे अच्छा लगेगा। वो तुरन्त मान गयी और मुझे हमेशा भाभी कहकर ही बुलाया जो मुझे अच्छा लगता था। वो बहुुत जल्द मेरी सहेली बन गयीं।
उनके पास हर समस्या का समाधान होता था। समस्या कितनी भी बड़ी हो, वो चुटकियों में समाधान निकाल लेती थीं।
हम दोनों ने किचिन में बहुत समय बिताया। उनकी कंपनी में समय कब निकल जाता था, पता ही नहीं चलता। बहुत हंसाती थीं वो। दूसरों को खुशियां देती और खुद के दुख या तकलीफ सबसे छिपा ले जाती। बचपन के किस्से तो ऐसे सुनाती कि लगता सब फिल्म के समान लाइव हो रहा है।
जब भी मैं किसी बात से परेशान होती तो उनको फोन लगाती। वो मुझसे हमेशा कहती-‘‘आंसू इतने सस्ते हो गये कि हर किसी के लिये और हर किसी बात पर बहा दो।’’ उनका हर सुझाव मैं मानती थी।
वो खुुद को हेड कुक कहती और मुझे अपना असिस्टेंट। कोई त्यौहार हो या परिवार का कोई कार्यक्रम, वो मेरे साथ किचिन में ही रहती। उनके रहने के कारण सब काम बड़े आसानी से हंसते-हंसाते हो जाते।
वो बोलती थी-‘‘मैं भीष्म पितामह हूं। उनकी तरह मुझे भी वरदान मिला है। जिस दिन थक जाऊंगी, इन्सुलिन नहीं लूंगी।’’ और उन्होंने शायद यही किया। आखिरी बार हम सबसे मिलने आयीं थीं मुंबई में। और ठीक एक महीने के बाद उनकी खबर आ गयी।
उनसे तो हमारे जीवन का हर लम्हा जुड़ा हुआ है। उन्हें हम कभी नहीं भूल पायेंगे। यकीन ही नहीं होता कि वो हमारे बीच आज नहीं है। या जहां भी हैं, वहीं से हमारी समस्याओं का समाधान पहुंचा रही हैं।
दीदी आपको हम कभी नहीं भूल पायेंगे!!!
रुपा सहगल
छोटी भाभी
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