किसी ने कहा था कि शंका विश्वास की बहन है, जो अपने भाई को भूल गयी। मतलब यह कि संदेह और भरोसा एक साथ पैदा हुये और देश, काल, परिस्थिति के अनुसार इनमें परिवर्तन आते गये। यदि हम इनका फायदा उठाना चाहें तो हमें इन्हें समझना पडे़गा।
1 संदेह कैसे पैदा हुआ?
जब जीवन किसी से प्रसन्न होकर उससे प्रेम करने लगा तो ईर्ष्या ने आकर मेरे कान में फुसफुसाकर कहा-‘‘देखो जीवन उसे ज्यादा चाहता है।’’ और मैंने तुलना करना शुरु कर दिया। मन और मस्तिष्क के घर्षण के फलस्वरुप संदेह पैदा हो गया।
2 संदेह का क्या होगा?
जो बाकी सबका होता है। या तो संदेह अपने सत्य को पा लेगा और आत्मसाक्षात्कार के बाद मुक्त हो जाएगा या फिर वो चेतना की किसी बंजर जमीन पर विकसित होगा और अपनी जडं़े जमाएगा। ईर्ष्या, तुलना, बदला, हवा-पानी और धूप बन जाएंगे। संदेह बढ़ेगा, संदेह की फसल पकेगी और जीवन दुख बन जाएगा।
3 क्या संदेह खराब चीज है?
नहीं, कुछ भी अच्छा और खराब नहीं होता। यह निर्भर करता है-इस्तेमाल करने वाले और उसके उद्देश्य पर। वैज्ञानिक भी संदेह करते हैं और सिद्धांत तक पहुंचते हैं और दुश्मन बना लेते हैं। फ्रेंकलिन रुजवेल्ट कहते हैं-‘‘हमारे कल के उपलब्धियों की सीमाएं हमारे आज के संदेह निर्धारित करेंगे।’’
4 आप और आपके संदेह-
आप कौन हैं? आपका सत्य क्या है? रॉल्फ मार्स्टन कहते हैं ‘‘आपके उद्देश्यों और लक्ष्यों में से आपके संदेहों को घटा दीजिये, सिर्फ आप बचेंगे।’’
5 संदेह का क्या इलाज है?
वैज्ञानिकों वाला संदेह, एक हथियार है, जिसे इस्तेमाल कर चेतना सत्य और असत्य की पतली रेखा के पार सत्य का साक्षात्कार करती है, वहीं दूसरी ओर सामान्य मानव की शंका एक बीमारी है। हकीम लुकमान कहते हैं-‘‘शक का कोई इलाज नहीं है।’’पर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और मनोविज्ञान ऐसा नहीं मानते हैं। कार्ल मार्क्स कहते हैं-‘‘हर मर्ज़ का इलाज होता है, दवाईयां। फिर चाहे वो शक हो या कोई और बीमारी।
6 शक या संदेह?
चेतना जब मस्तिष्क से प्रश्न करती है ‘‘सही या गलत’’? तो मन सक्रिय हो जाता है। और अपनी वासनाओं को साधने के लिए भ्रम के विचार चेतना के सामने प्रस्तुत करता है। जागी हुई चेतना संदेह करती है वैज्ञानिक की तरह। उसे संदेह की कुदाली से सत्य के सख्त धरातल को चीरना है। और सोई हुयी चेतना गुलाम बन जाती है उन विचारों का, और मस्तिष्क को गलत निर्णय तक पहुंचने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
शक हमारा स्वभाव है। हमें संदेह करना सीखना चाहिये।
गप्पू चतुर्वेदी
100counsellors.com
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