सजना संवरना हम महिलाओं का अधिकार, कर्त्तव्य और पसंदीदा कार्य भी है। शायद ही कोई महिला ऐसी हो जो सजना या श्रृंगार करना पसंद न करे। हम सभी नख-शिख श्रृंगार करते हैं। हमारे हर अंग के लिए आभूषण है, हर अंग को सजाने का एक तरीका है। माथे के लिए बिंदिया है तो नाक के लिए नथ। कान के लिए झुमके तो पैरों के लिए पायल। कलाई के लिए चूड़ियां तो कमर के लिए करधनी। यह सभी आभूषण सुंदरता बढ़ाने, अंगों को उभारने के अलावा स्वास्थ्य की रक्षा भी करते हैं।
1 महिलाओं के सोलह श्रृंगार क्या हैं?
सोलह श्रृंगार पर विचार करते हुए अत्रिदेव विद्यालंकार ने उल्लेख किया है कि भगवान की षोडश उपचार पूजा है, संस्कारों की संख्या भी सोलह है। स्त्रियों में चन्द्रकला का स्थान सोलह मानते हैं, संभवतः इसीलिये सोलह श्रृंगार की अवधारणा बनी। सोलह श्रृंगार हैं-
उबटन, स्नान, स्वच्छ वस्त्र धारण करना, मांग भरना, महावर लगाना, बाल संवारना, तिलक लगाना, ठुड्डी पर तिल बनाना, आभूषण पहनना, मेंहदी लगाना, आंखों में काजल लगाना, सुगंध लगाना, अरगजा, पान खाना, माला-गजरा पहनना, हाथ में नीलकमल धारण करना।
अंग शुचि मंजन वसन, मांग महावर केश।
तिलक भाल तिलचिबुक में, भूषण मेंहदी वेश।।
मिस्सी कागज अरगजा, बीरी और सुगंध।
पुष्पकली हित होयकर, तब नव सप्त निबन्ध।।
2 महिलाओं के आभूषण और एक्यूप्रेशर
शरीर विज्ञान के आधार पर ही आभूषण का चयन किया गया है। पायल और कड़े धारण करने से एड़ी, टखनों और पीठ के निचले भाग में दर्द नहीं होता। आभूषण जिन अंगों पर पहने जाते हैं, वे प्रायः शरीर के कोमल हिस्से होते हैं, जहां अधिक दबाव का असर होता है। गहने धारण करने के पीछे एक्यूप्रेशर पद्धति के नियम काम करते हैं। कर्ण छेदन के पीछे वैज्ञानिक कारण भी है। कान छेदने से कई बीमारियों का प्रकोप नहीं होता। ऐसा विश्वास है कि कान के उपरी भाग को छेदकर सफेद धागा पहनने से पुराने से पुराना दमा रोग ठीक हो जाता है। इसीलिये कर्ण छेदन का रिवाज लड़के और लड़की के लिए बराबर है।
दरअसल आभूषण जहां पहना जाता है, उस अंग को वह ढ़ंकता भी है और उसका सौंदर्य भी बढ़ाता है। जिस धातु से गहना बना होता है, उसका प्रभाव भी शरीर पर पड़ता है।
3 महिलाओं के श्रृंगार का आशय क्या है?
आंखों में काजल लगाने का आशय है-शील का जल नय नों में सदा रखना। नथ धारण करना अर्थात् मन को नाथना या मन को नियंत्रित रखना। बिंदी अर्थात् बदी या बुराई को छोड़ना। टीका लगाने के मायने हैं कि ध्यान रखें, यश का ही टीका लगे, कलंक का नहीं। कर्णफूल धारण करने का आशय है कि अपने कानों से दूसरों की प्रशंसा सुनें। हंसली का संदेश है कि हमेशा हंसमुख रहें। मोहनमाला का आशय है कि हमेशा सद्गुणों से सबका ध्यान मोह लें। कण्ठहार यानी सदैव पति के कण्ठ का हार बनें। कड़े का अर्थ है -किसी से कड़ी बात न करें। छल्ले का मतलब है किसी से छल न करें। करधनी या कमरबंध से आशय है कि सद्कर्मों के लिए हमेशा कमर बांधकर तैयार रहें। पायल का संदेश है कि सभी वृद्धजनों के चरण स्पर्श करें। बिछिया पहनने से आशय है कि हमेशा सही रास्ते पर चलें और मेंहदी का संदेश है कि लाज की लाली हमेशा बनाये रखंें।
पूर्णिमा दुबे
100counsellors.com
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